आज की चौपाई

अब लीला हम जाहेर करें,ज्यों सुख सैयां हिरदे धरें ।
पीछे सुख होसी सबन,पसरसी चौदे भवन ।।

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श्री बीतक साहिब क्यूँ और कैसे सुननी चाह...

श्री बीतक साहिब क्यूँ और कैसे सुननी चाहिए

हम सभी को बीतक सुनते समझते मंथन करते वक्त बीतक के हरेक लम्हे को आत्मसात करना है । हरेक प्रसंग में हमें डूब जाना है । उसकी एक एक लीला का चितवन करना है । जब उस समय मे हम चले जायेंगे तब असल बीतक समझ आएगी की हमारे धनीजी ने हमारे कारण हमको जगाने के लिए कितने दुख दर्द झेले है । जब हम उसमें डूबेंगे तब हमको असल चितवन का रस मिलेगा । तब परमधाम का चितवन भी होने लगेगा । ये बीतक हमारी अपनी बीतक है । ये कोई कथा नही है । कथा में बोलने व सुनाने वाला अलग सुनने वाला अलग और जिनकी बात सुनाई जाती है वह अलग होता है । जबकि हमारी बीतक में तो हर जगह हम ही हम है । रूह मोमिन सुन्दरसाथ धनी परमधाम हरेक में हमारी मौजूदगी है । इसलिए हमें बीतक सुनते वक्त हमको ही हमारी बाते याद दिलाई जाती है क्योकि भूले भी तो हम ही है तो हम सभी मिलकर बीतक को अब की बार अपनी बीतक के रूप में ग्रहण करे । खुद को ही अपनी बीतक में मेहसूस करे और उन पलों को दिल मे ऐसे भरे की कभी भी इस दिल से वो समय निकल ही न पाए । हमारी अपनी बीतक में हमें खो जाना है । डूब जाना है और उसमें डूबकर इस संसार को तैर जाना है । अनुभव ही सबसे बड़ा शिक्षक है । उस अनुभव में डूबना है । अंतर्ध्यान के उस समय मे डूबना है उस वक्त को अभी भी इस समय मे अनुभव करना है । जब से धनी सूरत से निकले कोई भी सुन्दरसाथ अलग नही हुए और आज के दिन तन से अलग होने की बात किसी को भी नही मंजूर थी । क्योकि अब धनी खुद मुलमिलावे की याद में चितवन में हमको ले जाना चाहते है । हमें पल पल उस मे चित को डुबाने को कह रहे है । तभी महामति जी कह रहे है अब हम रह्यो न जाव ही मुलमिलावे बिन ये हाल हम सबके हो जाये यही सिखापन है हम सबको । ताकि घर चलकर हम अपनी असल मूल तन में उठ खड़े हो जाये । और यह खेल पूरा हो जाये । प्रेम प्रणामजी