आज की चौपाई

बीड़ी सोभित मुख में, मोरत लाल तंबोल ।
सोभा इन सूरत की, नहीं पटंतर तौल ।।

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परमात्मा एक है

परमात्मा एक है

पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानन्द तो एक ही हैं, किन्तु लोगों ने अलग-अलग अनेक परमात्मा की कल्पना कर ली है । देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा तो दूर की बात है, आजकल तो पीरों-फकीरों की कब्रों, पेड़, पौधों तथा नदियों के पूजन की परम्परा चल पड़ी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने ऋषिकेश में तप किया था। शिव जी सदैव ध्यान-समाधि में लीन रहते हैं । महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण के द्वारा संध्या किये जाने का वर्णन है । भला ये सब किसका ध्यान-वन्दना करते रहे हैं ? वेद का कथन है कि उस अनादि अक्षरातीत परब्रह्म के समान न तो कोर्इ है, न हुआ है, और न कभी होगा। इसलिये उस परब्रह्म के सिवाय अन्य किसी की भी भक्ति नहीं करनी चाहिए। (ऋग्वेद ७/३२/२३) वेद में कहा गया है कि एक ही अद्वितीय ब्रह्म को मेधावीजन इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, सुपर्ण, गरूत्मान्, दिव्य, यम, मातरिश्वा आदि अनेक नामों से कहते हैं (अथर्ववेद ९/१०/२८) । उस एक सत्यस्वरूप ब्रह्म के विभिन्न गुणों के आधार पर विभिन्न नाम माने गये हैं । वेद में किसी भी देवी-देवता की स्तुति नहीं है । उस ब्रह्म को अखिल ऐश्वर्ययुक्त होने के कारण इन्द्र , सबके लिए प्रीति का प्रात्र होने के कारण मित्र , सबसे श्रेष्ठ होने से वरुण , ज्ञान स्वरूप होने से अग्नि , उत्तम पालन युक्त गुणों से पूर्ण होने से सुपर्ण , महान स्वरूप वाला होने से गरूत्मान् , तथा प्रकाशमय होने से दिव्य कहा जाता है । उस ब्रह्म को ही सबका नियामक होने के कारण यम तथा अनन्त बलयुक्त होने के कारण मातरिश्वा नाम से जाना जाता है । शतपथ ब्राह्मण का कथन है कि जो एक परब्रह्म को छोड़कर अन्य की भक्ति करता है , वह विद्वानों में पशु के समान है (श. ब्र. १४/४/२/२२) । वर्तमान हिन्दू मान्यताएँ , जिसमें अनेक देवी-देवताओं की पूजा का विधान है , वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा विपरीत हैं । ग्रन्थों का गलत अर्थ करने से ही इस प्रकार की गलत धारणाओं ने समाज को जकड़ लिया है। ब्रह्म के अतिरिक्त किसी अन्य पंचभौतिक शरीरधारी देवी-देवता की स्तुति मान्य नहीं है । श्रुतियों द्वारा गान किया गया है कि "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति" अर्थात् परमात्मा तो सर्वकाल में मात्र एक और अद्वितीय है और सर्वत्र उसी को उपास्य माना गया है । सिख गुरु श्री नानक जी ने कहा है- "नानक एको सुमरिए" अर्थात् उस एक परब्रह्म का ध्यान करना चाहिए । इसी प्रकार मुस्लिम ग्रन्थों में कहा गया है- "कुलहू अल्ला अहद" अर्थात् खुदा एक है । क़ुरआन में कहा गया है - "वह अल्लाह है जिसके अलावा अन्य कोई भी पूज्य नहीं है । वह पर्दे के पीछे व सामने का ज्ञाता है । वह अत्यन्त कृपाशील (रहमान) और दयावान है । वह अल्लाह है, वह सर्वशासक है, वह अत्यन्त गुणवान, शान्ति स्वरूप, शरण दाता, संरक्षक, प्रभुत्वशाली, और अत्यन्त महान है ।" (पारा २८ सूरत ५९ आयत २२,२३,२४) बाइबल में कहा गया है - परमात्मा एक ही है, कोई दूसरा नहीं (मार्क १३/३२) । एकमात्र परमात्मा ही हमारा स्वामी है और तुम्हें उससे अपने सम्पूर्ण हृदय, आत्मा, मस्तिष्क, और सम्पूर्ण शक्ति से प्रेम करना चाहिए (मार्क १२/२९,३०) । निष्कर्ष- सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा एक ही है । वह वैकुण्ठ, निराकार, क्षर (नासूत) से परे योगमाया, अक्षर ब्रह्माण्ड (जबरूत) से भी परे दिव्य ब्रह्मपुर, परमधाम (लाहूत) में विराजमान हैं । वह देवी-देवताओं, त्रिदेव, व अक्षर ब्रह्म से भी परे हैं तथा उन्हें ही परब्रह्म, प्राणनाथ, अक्षरातीत, नूरजमाल, अल्लाह, खुदा, The Lord आदि नामों से पुकारा जाता है ।