*आइयां कांतन वालिया*
सुनो सैयां कहे इंद्रावती, तुम आईयां उमेद कर ।
अब समझो क्यों न पुकारते, क्यों रहियां नींद पकर ।।
सो पेहेचान सबों पसराए के, देसी सुख वैराट...
Question: सो पेहेचान सबों पसराए के, देसी सुख वैराट। लौकिक नाम दोऊ मेट के, करसी नयो ठाट।। कि. 52/26 इस चौपाई को समझाईए साथ जी
Answer: अब अक्षरातीत 'श्री प्राणनाथजी' के स्वरूप में सारे ब्रह्माण्ड को अपने स्वरूप की पहचान देंगे तथा सबको अखण्ड मुक्ति का सुख प्रदान करेंगे। वे अपनी पूर्व लीलाओं के दोनों लौकिक नामों को मिटाकर नयी शोभा वाले नाम से जाहिर होंगे। यहां प्रसंग है कि पूर्व में श्री कृष्ण जी और श्री देवचन्द्र जी के नाम से अक्षरातीत लीला कर चुके थे। ये दोनों नाम लौकिक हैं, क्योंकि इन तनो के पिता क्रमशः वसुदेव और मत्तू मेहता है। इसी प्रकार 'मिहिरराज' भी लौकिक नाम ही है जिनके पिता श्री केशव राय है। परब्रह्म का कोई पिता नहीं हो सकता, इसलिये अक्षरातीत ने स्वयं को 'श्री प्राणनाथ' एवं श्री जी के रूप में जाहिर किया