आज की चौपाई

*आइयां कांतन वालिया*

सुनो सैयां कहे इंद्रावती, तुम आईयां उमेद कर ।
अब समझो क्यों न पुकारते, क्यों रहियां नींद पकर ।।

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ते माटे हूं कहयूं एम, नहीं तो रामत जे की...

Shri Nijanand Samparday
Question: ते माटे हूं कहयूं एम, नहीं तो रामत जे कीधी श्री कृष्ण । ए नाम नुं तारतम में केम केहेवाय, साथ भारी जुओ जीव मांहें । । प्र. गु. 33/6 कृपया इस चौपाई का सार बताईए सुन्दरसाथ जी

Answer: श्री इन्द्रावती जी हम सुन्दरसाथ को समझा रही हैं कि मैं इसलिये आप सबसे यह बात कह रही हूँ, अन्यथा रामतें तो श्री कृष्ण जी ने की हैं। हे साथ जी! यदि आप अपने जीव के हृदय में विचार करके देखें, तो इस श्री कृष्ण नाम को तारतम में कैसे कहा जा सकता है? भावार्थ उपरोक्त पाँचवी चौपाई में कहा गया है कि जे वृज लीला कीधी जगदीस, किन्तु प्रकास हिंदुस्तानी में कहा गया है कि जगदीस नाम विष्णु को होए, यों न कहूं तो समझे क्यों कोए । प्रश्न यह है क्या भगवान विष्णु ब्रह्मात्माओं के साथ लीला कर सकते हैं? तो इसका तत्क्षण उत्तर होगा. नहीं। किन्तु प्रकास गुजराती में जगदीस शब्द आने का कारण यह है कि भगवान विष्णु ने जो तन धारण किया था, उसका नाम श्री कृष्ण था, जिन्हें विष्णु भी कहा जाता है। इस तन में अक्षर की आत्मा के साथ धाम धनी का आवेश भी विराजमान था । यदि आवेश न होता, तो भगवान विष्णु रूप श्री कृष्ण एक पल भी आत्माओं के साथ लीला नहीं कर सकते थे। महारास के समय ऐसी ही लीला हुई, जब अन्तर्धान के प्रसंग में अक्षर ब्रह्म की आत्मा से आवेश के हटते ही सखियों को श्री कृष्ण जी का तन दिखायी नहीं दिया, जबकि वह वहीं पर था। सामान्यतः व्यवहार में यही देखा जाता है कि कार्य तो आन्तरिक स्वरूप करता है, किन्तु जन. सामान्य बाह्य तन को ही लीला कर्ता मानकर उसका नाम जपने लगते हैं। यही कारण है कि लीला करने वाले तो अक्षरातीत हैं, किन्तु लोक में प्रसिद्धि तन के नाम श्री कृष्ण या जगदीश की हो रही है। श्री प्राणनाथ श्री जी साहिब जी की नहीं उपरोक्त छठी चौपाई इस सत्य को उद्घाटित किया जा रहा है कि शरीर के नाम श्री कृष्ण को तारतम में कैसे कहा जा सकता है? इसी वजह से स्वयं श्री हकी स्वरूप श्री प्राणनाथ श्री जी साहिब जी ने खुद तारतम में से श्री कृष्ण और श्री देवचन्द्र जी ने नाम हटा कर क्रमश: श्री जी साहिब और स्यामा जी वर किए जिसका प्रमाण पन्ना से सबको मिल सकता है क्यूंकि श्री सरूप साहिब पन्ना के हस्त लिखित सैंकड़ों साल पहले से लिखे हुए हैं आज के नहीं