आज की चौपाई

बीड़ी सोभित मुख में, मोरत लाल तंबोल ।
सोभा इन सूरत की, नहीं पटंतर तौल ।।

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ए जो मासूक जबरूत का, कहियत है लाहूत । स...

Shri Nijanand Samparday
Question: ए जो मासूक जबरूत का, कहियत है लाहूत । सो इत हुआ जाहिर, ऊपर मसनन्द मलकूत ।। श्री बीतक साहिब मंगलाचरन की यह चौ. क्या कहती है बताईए सुन्दरसाथ जी

Answer: अक्षर ब्रह्म के प्रीतम परमधाम में रहने वाले अक्षरातीत श्री राजजी महाराज हैं। यानि कि परम धाम में जैसे रूहें अपने धनी की आशिक हैं वैसे ही अक्षर ब्रहम भी श्री राज जी महाराज का आशिक है और इस खेल में उतरने से रूहों और अक्षर ब्रह्म दोनों को श्री मुख वाणी से पता चलता है कि रूहें और अक्षर ब्रह्म दोनों तो धनी के माशूक हैं और धाम धनी ही केवल सारे परम धाम के आशिक हैं । मोमिनों (ब्रह्मसृष्टियों) के यहां आ जाने से सारी दुनियां को भी अक्षरातीत की पहचान इस मिट जाने वाले संसार में हो गई।