ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
तुम निरखो सत सरुप, सत स्यामाजी रूप अनूप।...

Question: तुम निरखो सत सरुप, सत स्यामाजी रूप अनूप। साजो री सत सिनगार, विलसो संग सत भरतार।।{कि.76/3} बेवरा करें सुन्दरसाथ जी
Answer: हे रूहो! तुम अपने अखण्ड तनों को देखो। अपनी परआत्म को निरखो। अपनी सुभान श्री श्यामाजी का अनुपम स्वरूप देखो तथा अपने अखण्ड धनी से विलसने के लिए अपने अखण्ड सिनगार को धारण करो (अर्थात् संसार में सच्चे अंग के भाव से चलो)।