ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
सो बुध दोऊ अर्सों की, दोऊ सरूप थें जो गु...

Question: सो बुध दोऊ अर्सों की, दोऊ सरूप थें जो गुझ । ए सुख कायम अर्स रूहन के, सो कायम कुंजी दई मुझ । । सिनगार के दूसरे प्रकरण की चौ का बेवरा करें सुन्दरसाथ जी
Answer: अब श्री राजजी महाराज की जागृत बुद्धि तारतम वाणी ने रंग महल और अक्षरधाम इन दो अर्सों की तथा श्री राजजी महाराज और अक्षरब्रह्म के स्वरूप की जानकारी दी। इन्हें आज दिन तक कोई नहीं जानता था। इस तरह से अर्श की रूहों के अखण्ड सुखों की जानकारी किसी को नहीं थी। उस अखण्ड की जानकारी जागृत बुद्धि के ज्ञान से मुझे दी है।