ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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श्री जिन्दादास जी
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श्री जी ने विरह तामस का किया था जिसका कारण गोवर्धन भाई जी और लालदास जी का वोह प्रसंग था जिसमें लालदास जी श्री जी से कहते हैं कि आप हमारे भरोसे जागनी कार्य न करें क्योंकि हमारा ईमान तो आपकी चटाई पर है
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योगमाया का कृष्ण तत्व
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श्री राज जी की नासिका सब परमधाम में सुगंधी फैलाती है। उनके बेसुर का क्या कहूं लालिमा से भरपूर मानिक नग से जड़ा नग यू तरंग फैला रहा हैं इस मानों सब रूहों को लालिमा वही दे रहा हो। जैसे ही पीयू हंसते है श्वेत दंत की शोभा पा कर वे नग श्वेत होय जा रहा है। और होंठों से छूता स्पर्श मानिक नग अधरों का अमीरस पी कर मन मगन हो गया है। बेसुर की शोभा बोहोत आकर्षित है। नासिका की नीचे की जगह प्यारी शोभा पर सुशोभित...
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हमारे इन गुण अंग इन्द्रियों को मारकर हमें कौन जिन्दा करेगा? इनको उलटे रास्ते से निकालकर धनी के सम्मुख कौन करेगा? इस दुःख के संसार में धनी के बिना सच्चे सुख कौन देगा ?
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