बीड़ी सोभित मुख में, मोरत लाल तंबोल ।
सोभा इन सूरत की, नहीं पटंतर तौल ।।
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श्री इन्द्रावती जी हम सुन्दरसाथ को समझा रही हैं कि मैं इसलिये आप सबसे यह बात कह रही हूँ, अन्यथा रामतें तो श्री कृष्ण जी ने की हैं। हे साथ जी! यदि आप अपने जीव के हृदय में विचार करके देखें, तो इस श्री कृष्ण नाम को तारतम में कैसे कहा जा सकता है? भावार्थ उपरोक्त पाँचवी चौपाई में कहा गया है कि जे वृज लीला कीधी जगदीस, किन्तु प्रकास हिंदुस्तानी में कहा गया है कि जगदीस नाम विष्णु को होए, यों न कहूं तो समझ...
Read Quiz →अक्षर ब्रह्म के प्रीतम परमधाम में रहने वाले अक्षरातीत श्री राजजी महाराज हैं। यानि श्री राजी महाराज अक्षर ब्रहम के भी महबूब हैं जैसे रूहों के हैं अक्षर ब्रह्म भी परमधाम में श्री राज जी महाराज का आशिक है और इस खेल में उतर आने से श्री राज जी महाराज अब उनके आशिक हैं इसलिए मोमिनों ब्रह्म सृष्टि के यहां आ जाने से सारी दुनियां को भी अक्षरातीत की पहचान इस मिट जाने वाले संसार में हो गई है
Read Quiz →शेख बदल भाई और कान्ह जी भाई यह दोनों श्री जी और 12 मोमिनों के बीच की ऐसी कड़ी थी कि यह पत्र इधर से उधर ले जाते थे और ये दोनों जी भी कहते सब विश्वास करते थे उस बात को सत्य मानते थे
Read Quiz →मेरे प्राणनाथ! अपने स्वरूप की पहचान कराने के पश्चात् भी आप मुझे दर्पण क्यों दिखा रहे हैं अर्थात् अपने ब्रज-रास के लीला रूपी तनों को ही अपना स्वरूप क्यों बता रहे हैं कि इन में अक्षरातीत विराजमान हैं ? जब हाथ में कंगन पहना हो तो उसे सीधा ही देखा जा सकता है, उसे देखने के लिये दर्पण की क्या आवश्यकता है ? यह तो सब जानते है कि ब्रज और रास में राधा तथा श्री कृष्ण जी के तन में श्री श्यामा जी एवं राज जी ने...
Read Quiz →अब अक्षरातीत 'श्री प्राणनाथजी' के स्वरूप में सारे ब्रह्माण्ड को अपने स्वरूप की पहचान देंगे तथा सबको अखण्ड मुक्ति का सुख प्रदान करेंगे। वे अपनी पूर्व लीलाओं के दोनों लौकिक नामों को मिटाकर नयी शोभा वाले नाम से जाहिर होंगे। यहां प्रसंग है कि पूर्व में श्री कृष्ण जी और श्री देवचन्द्र जी के नाम से अक्षरातीत लीला कर चुके थे। ये दोनों नाम लौकिक हैं, क्योंकि इन तनो के पिता क्रमशः वसुदेव और मत्तू मेहता है।...
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