*आइयां कांतन वालिया*
सुनो सैयां कहे इंद्रावती, तुम आईयां उमेद कर ।
अब समझो क्यों न पुकारते, क्यों रहियां नींद पकर ।।
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अब अक्षरातीत 'श्री प्राणनाथजी' के स्वरूप में सारे ब्रह्माण्ड को अपने स्वरूप की पहचान देंगे तथा सबको अखण्ड मुक्ति का सुख प्रदान करेंगे। वे अपनी पूर्व लीलाओं के दोनों लौकिक नामों को मिटाकर नयी शोभा वाले नाम से जाहिर होंगे। यहां प्रसंग है कि पूर्व में श्री कृष्ण जी और श्री देवचन्द्र जी के नाम से अक्षरातीत लीला कर चुके थे। ये दोनों नाम लौकिक हैं, क्योंकि इन तनो के पिता क्रमशः वसुदेव और मत्तू मेहता है।...
Read Quiz →मेरे प्राणनाथ! अपने स्वरूप की पहचान कराने के पश्चात् भी आप मुझे दर्पण क्यों दिखा रहे हैं अर्थात् अपने ब्रज-रास के लीला रूपी तनों को ही अपना स्वरूप क्यों बता रहे हैं कि इन में अक्षरातीत विराजमान हैं ? जब हाथ में कंगन पहना हो तो उसे सीधा ही देखा जा सकता है, उसे देखने के लिये दर्पण की क्या आवश्यकता है ? यह तो सब जानते है कि ब्रज और रास में राधा तथा श्री कृष्ण जी के तन में श्री श्यामा जी एवं राज जी ने...
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Read Quiz →ऐसे प्रकरण हैं एक शब्द मेहर प्रकरण मेहर सागर और दूसरा हो स्याम पिउ पिउ करूं रे पुकारूं खटरूती प्रकरण 15 और तीसरा मन शब्द खोज थके खेल खसम री किरंतन 47 और चौथा निसवत शब्द सिनगार प्रकरण 7 और पांचवा नूर शब्द परिकरमा प्रकरण 35 से 37 तक ऐसे और भी कई प्रकरण हैं
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