आज की चौपाई

बीड़ी सोभित मुख में, मोरत लाल तंबोल ।
सोभा इन सूरत की, नहीं पटंतर तौल ।।

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Shri Nijanand Samparday

ते माटे हूं कहयूं एम, नहीं तो रामत जे कीधी श्री कृष्ण । ए नाम नुं तारतम में केम केहेवाय, साथ भारी जुओ जीव मांहें । । प्र. गु. 33/6 कृपया इस चौपाई का सार बताईए सुन्दरसाथ जी

by Shri Nijanand Samparday

श्री इन्द्रावती जी हम सुन्दरसाथ को समझा रही हैं कि मैं इसलिये आप सबसे यह बात कह रही हूँ, अन्यथा रामतें तो श्री कृष्ण जी ने की हैं। हे साथ जी! यदि आप अपने जीव के हृदय में विचार करके देखें, तो इस श्री कृष्ण नाम को तारतम में कैसे कहा जा सकता है? भावार्थ उपरोक्त पाँचवी चौपाई में कहा गया है कि जे वृज लीला कीधी जगदीस, किन्तु प्रकास हिंदुस्तानी में कहा गया है कि जगदीस नाम विष्णु को होए, यों न कहूं तो समझ...

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ए जो मासूक जबरूत का, कहियत है लाहूत । सो इत हुआ जाहिर, ऊपर मसनन्द मलकूत ॥ कृपया श्री बीतक साहिब प्र 62 चौ 59 का बेवरा करें सुन्दरसाथ जी

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अक्षर ब्रह्म के प्रीतम परमधाम में रहने वाले अक्षरातीत श्री राजजी महाराज हैं। यानि श्री राजी महाराज अक्षर ब्रहम के भी महबूब हैं जैसे रूहों के हैं अक्षर ब्रह्म भी परमधाम में श्री राज जी महाराज का आशिक है और इस खेल में उतर आने से श्री राज जी महाराज अब उनके आशिक हैं इसलिए मोमिनों ब्रह्म सृष्टि के यहां आ जाने से सारी दुनियां को भी अक्षरातीत की पहचान इस मिट जाने वाले संसार में हो गई है

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12 मोमिनों और श्री जी के बीच ऐसी कौन सी कड़ी थी जिस पर दोनों विश्वास करते थे कि इसने जो कहा वोह सत्य है

by Shri Nijanand Samparday

शेख बदल भाई और कान्ह जी भाई यह दोनों श्री जी और 12 मोमिनों के बीच की ऐसी कड़ी थी कि यह पत्र इधर से उधर ले जाते थे और ये दोनों जी भी कहते सब विश्वास करते थे उस बात को सत्य मानते थे

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हवसे में श्री इन्द्रावती जी पिया जी से क्या बातें करती है क्या उलाहने देती हैं उनसे क्या जवाब मांगती हैं

by Shri Nijanand Samparday

मेरे प्राणनाथ! अपने स्वरूप की पहचान कराने के पश्चात् भी आप मुझे दर्पण क्यों दिखा रहे हैं अर्थात् अपने ब्रज-रास के लीला रूपी तनों को ही अपना स्वरूप क्यों बता रहे हैं कि इन में अक्षरातीत विराजमान हैं ? जब हाथ में कंगन पहना हो तो उसे सीधा ही देखा जा सकता है, उसे देखने के लिये दर्पण की क्या आवश्यकता है ? यह तो सब जानते है कि ब्रज और रास में राधा तथा श्री कृष्ण जी के तन में श्री श्यामा जी एवं राज जी ने...

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सो पेहेचान सबों पसराए के, देसी सुख वैराट। लौकिक नाम दोऊ मेट के, करसी नयो ठाट।। कि. 52/26 इस चौपाई को समझाईए साथ जी

by Shri Nijanand Samparday

अब अक्षरातीत 'श्री प्राणनाथजी' के स्वरूप में सारे ब्रह्माण्ड को अपने स्वरूप की पहचान देंगे तथा सबको अखण्ड मुक्ति का सुख प्रदान करेंगे। वे अपनी पूर्व लीलाओं के दोनों लौकिक नामों को मिटाकर नयी शोभा वाले नाम से जाहिर होंगे। यहां प्रसंग है कि पूर्व में श्री कृष्ण जी और श्री देवचन्द्र जी के नाम से अक्षरातीत लीला कर चुके थे। ये दोनों नाम लौकिक हैं, क्योंकि इन तनो के पिता क्रमशः वसुदेव और मत्तू मेहता है।...

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