ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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श्री राज जी महाराज की तीन सूरतें हैं जिसे कुरान में अलफ लाम मीम और श्री कुलजम वाणी में बसरी मलकी हकी सूरत कहा है इन तीनों सूरतों को मिलाने पर सत चित् आनद मिल कर एक सच्चिदानंद पारब्रहम सरूप हैं पहली चौपाई में मलकी महमंद श्री श्यामा जी हैं और दूसरी चौपाई में बसरी महमंद अक्षर की आत्म को कहा है
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हे रूहो! तुम अपने अखण्ड तनों को देखो। अपनी परआत्म को निरखो। अपनी सुभान श्री श्यामाजी का अनुपम स्वरूप देखो तथा अपने अखण्ड धनी से विलसने के लिए अपने अखण्ड सिनगार को धारण करो (अर्थात् संसार में सच्चे अंग के भाव से चलो)।
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रंगमहल की बाहरी रोंस की पूरी गृद में पूर्व की तरफ चांदनी चौंक के साथ अनार,अमृत और जांबू वन की शोभा आई है दक्षिण में बट पीपल की चौंकी, पश्चिम में फूल बाग उत्तर में लाल चबूतरा खड़ोकली और ताड़वन की शोभा आई है सुन्दरसाथ जी
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असराफील ने दो सूर फूंकने है एक तो हरिद्वार में सारे धर्माचार्यों में श्रीजी साहिब जी जाहिर हुए और सब धर्माचार्यों का गुमान तोड़ा और फिर दूसरा सब काजियों का गुमान तोड़कर ईमाम मेंहदी जाहिर हुए यह पहला सूर असराफील ने फूंका दूसरा सूर फूंकने के लिए वोह तैयार खडा है जो विष्णु को जाकर तारतम देगा फिर ब्रह्मांड प्रलय होगा यह दो काम असराफील के जिम्में हैं
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श्री साकुमार और श्री साकुंडल
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