ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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अक्षर ब्रह्म के प्रीतम परमधाम में रहने वाले अक्षरातीत श्री राजजी महाराज हैं। यानि कि परम धाम में जैसे रूहें अपने धनी की आशिक हैं वैसे ही अक्षर ब्रहम भी श्री राज जी महाराज का आशिक है और इस खेल में उतरने से रूहों और अक्षर ब्रह्म दोनों को श्री मुख वाणी से पता चलता है कि रूहें और अक्षर ब्रह्म दोनों तो धनी के माशूक हैं और धाम धनी ही केवल सारे परम धाम के आशिक हैं । मोमिनों (ब्रह्मसृष्टियों) के यहां आ जा...
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नीचे श्री यमुना जी में 16 थंभों पर पार घाट खड़ा है और ऊपर 12 थंभो की शोभा आई है
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एक कुरान के रूप में दूसरा फुरमान भागवत के रूप में है धाम धनी ने खुद आकर यह दोनों पुरानी किताबें रद करके श्री कुलजम वाणी की कुंजी से अपनी और अपने घर की पहचान करवाई खुलासा ग्रन्थ प्र 8/9,10 में इसका प्रमाण वर्णित है
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श्री मिहिर राज जी, श्री उद्धव ठाकुर जी, श्री सांवलिया ठाकुर जी ये तीनों हवसे की जेल में बंद थे
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रसूल साहब बसरी सरूप के एक हजार नब्बे बरस बीतने पर अर्थात् सम्वत् १७३५ में कयामत के निशान जाहिर होंगे, ऐसा कुरान में लिखा है, परन्तु किसी ने इस इशारे को नहीं समझा।
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