ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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श्री मेहराज ठाकुर जी ने तीन बार वजारत संभाली पहली तब जब कला जी के पास सब सुन्दरसाथ के लिए भंडारा आयोजित करने के लिए सामान इकट्ठा करते रहे दूसरी बार भाभी के ताने सहने के बाद नौतनपुरी में तीसरी बार सुन्दरसाथ पर कष्ट न आने पाये तब 1720 में
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श्री मद् भागवत स्वपन की बुद्धि का ज्ञान है और दर्शन लीला में नौतनपुरी में जाग्रत बुद्ध श्री देवचन्द्र जी के अन्दर आकर विराजमान हो जाती है जिससे क्षर अक्षर अक्षरातीत तक का सारा ज्ञान स्वतः ही उनको मिल जाता है जो श्री मद् भागवत में तो बिल्कुल भी नहीं है यहीं कारण था कि श्री देवचन्द्र जी दुबारा कभी भागवत सुनने न गए न सुन्दरसाथ से भागवत का आरती पूजन करवाया
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रंगमहल की दक्षिण दिशा में बट पीपल की चौंकी का
Read Quiz →जाग्रत बुद्ध सम्वत् 1678 आशों सुदी एकादशी कृष्ण पक्ष में रविवार सुबह 8 बजे नौतनपुरी श्याम जी के मन्दिर में अवतरित हुई
Read Quiz →गुण धनी के याद कर,पकड़ पिया के पाय। सुखें बैठ सुखपाल में,देसी वतन पहुँचाये।। गरीब दास जी श्री जी से पूछते हैं कि हे धाम धनी हमने तो आपके ही चरन पकड़ रखे हैं सदा आपके ही गुण गाते हैं तो आप अभी सुखपाल मंगाओ और हमें धाम वापिस ले चलो तब श्री जी जवाब देते हैं कि सुन्दरसाथ जी धाम में तो भेले पौढ़े भेले जागसी होगा जब तक हरेक रूह जाग्रत नही हो जाएगी तब तक कोई धाम वापिस नहीं जा पायेगा
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