बीड़ी सोभित मुख में, मोरत लाल तंबोल ।
सोभा इन सूरत की, नहीं पटंतर तौल ।।
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गोदावरी बाई श्री जी साहेब जी से फूल बाई जी के बारे मे बात कर रही है और कह रही है कि राज जी इस दुख के खेल को हमने आपसे मांगा था परन्तु यहाँ इस खेल में आकर तो स्वयं आपको ही दुख उठाना पड़ा अपने सुंदरसाथ की खातिर आपको अपनी धर्म पत्नी फुलबाई तक का त्याग करना पड़ा हे धनी ये माया का खेल बहुत दुख दाई है l
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Read Quiz →तीन सरूप बसरी मलकी और हकी ही हैं जिन्हें सत् चिद और आनंद कहा है तीनों को मिला दें तो सचिदानंद पूर्ण सरूप होता है
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