ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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शुक्ल पक्ष की चौदस को हम सब सखियाँ व श्री राजश्यामा जी के साथ टापू महल की चादनी पर बैठते हैं और चारों घाटों की शोभा का आनंद लेते हैं और ये हैं सोलह देहरी का घाट तेरह देहरी का घाट झुण्ड का घाट नौ देहरी का घाट
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किंरतन किताब में आवो जी वाला मारे घेर इस प्रकरण की केवल तीन ही चौपाईयां हैं यहीं सबसे छोटा प्रकरण है
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चार पदारथ में पहला मनुष्य तन दूसरा भरतखंड तीसरा कलियुग और चौथा उस एक पारब्रह्म की पहचान जो अपनी आत्माओं संग इस माया में पधारे हैं
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श्री महामति जी कहते हैं कि सभी सखियां पल भर में ही रंगमोहोल की बाहरी परिकरमा में घूम कर वापिस श्री राज जी के चरणों में आती हैं सब श्री राज जी के प्रेम में इतनी गर्क हैं कि उनकी प्रेम की तरंगों की कोई पारावार नहीं है और यह प्रसंग तीसरी भोम की पड़साल का है
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श्री श्यामा महारानी हमारे हादी धनी श्री देवचन्द्र जी ने परा शक्ति के ज्ञान जाग्रत बुद्ध से श्री गांग जी भाई की जागनी करी थी प्रमाण यह है कि जब सुनी पार की बान तब धनी की भई पहचान श्री मद् भागवत अपरा शक्ति का ज्ञान है इससे किसी की जागनी सम्भव नही है ब्रज रास में लीला करने वाला कौन है और जिसके साथ लीला हुई वे कौन हैं और लीला क्यूँ करनी पड़ी इसका पहचान परा शक्ति के ज्ञान जाग्रत बुद्ध में ही है अपरा शक्...
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