ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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यहां संसार में यदि आंखें खोलकर देखो तो श्री राजजी महाराज का इश्क बेशुमार है जब अपने इश्क की रहनी को देखकर हंसती हूं तो मैंने अपने ऊपर ही बेशुमार हंसी को देखा। श्री राजजी महाराज के बेशुमार इश्क को देखा। यह दोनों की पहचान श्री राजजी महाराज की जागृत बुद्धि उनके ईलम ने कराई।
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धनी के हुक्म ने आत्माओं को माया का यह खेल दिखाया है। (यहा आत्म ने जो तन धारण किए हैं वोह धनी के हुक्म स्वरूप हैं परमधाम में भी रुहें धनी के तन हैं और माया में भी )धनी के हुक्म से ही आत्माओं ने इस हुक्म (आदेश) स्वरूप ब्रह्माण्ड को देखा है। संसार के सभी प्राणियों को न्याय ( आखिरत ) के दिन हुक्म से ही बहिश्तों का सुख प्राप्त होगा और दोजक में प्रायश्चित की अग्नि में जलना पड़ेगा।
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बट पीपल की चौकी
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हम सभी सखियां अपने प्रीतम श्री राजस्यामा जी के संग कृष्ण पक्ष की चौथ को परम धाम में नूर बाग फूल बागअन्न बन और दूब दूलिचा भ्रमण को जाते हैं
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श्री इन्द्रावती जी हम सुन्दरसाथ को समझा रही हैं कि मैं इसलिये आप सबसे यह बात कह रही हूँ, अन्यथा रामतें तो श्री कृष्ण जी ने की हैं। हे साथ जी! यदि आप अपने जीव के हृदय में विचार करके देखें, तो इस श्री कृष्ण नाम को तारतम में कैसे कहा जा सकता है? भावार्थ उपरोक्त पाँचवी चौपाई में कहा गया है कि जे वृज लीला कीधी जगदीस, किन्तु प्रकास हिंदुस्तानी में कहा गया है कि जगदीस नाम विष्णु को होए, यों न कहूं तो समझ...
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