ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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कुंजी श्री श्यामा जी लाई पर उन्होंने उस कुंजी से कुछ नहीं खोला क्योंकि उनके पास ताला खोलने की कला नहीं थी ( यानि हुकम नहीं था ) कुंजी उन्होंने श्री इन्द्रावती जी को सौंपी जिससे श्री इन्द्रावती जी ने सारे संसार के ग्रन्थों के, धर्मों के ताले खोल कर श्री प्राणनाथ जी एक पूर्णब्रहम की पहचान पसराई
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खूब खुसालियां रूहों के मन का सरूप हैं
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धाम धनी जी ने खेल दिखाने के लिए अपना हुक्म का स्वरूप बनाया और 12000 रूहों के भी हुक्म के स्वरूप बनाये । अब चौ . मंथन करें ,धाम धनी की आज्ञा (आदेश) ने हुक्म स्वरूपा आत्माओं को माया का यह खेल दिखाया है। धाम धनी के हुक्म से ही आत्माओं ने इस हुक्म (आदेश) स्वरूप ब्रह्माण्ड को देखा है। संसार के सभी प्राणियों को न्याय (आखिरत) के दिन हुक्म से ही बहिश्तों का सुख प्राप्त होगा और दोजक में प्रायश्चित की अग्न...
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परिकरमा ग्रन्थ से प्रेम को अंग बरनन वाले प्रकरण की चौथी चौपाई
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रसूल साहब कहते हैं कि पारब्रह्म अतीत में छिपे हैं जो दिखाई नहीं देते। हमारा खुदा मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारों में बैठा है। उसकी हम पूजा करते हैं। हम छिपे परमात्मा को जो नजर नहीं आता, नहीं मानते। हम तो परमात्मा को सामने देखकर पूजते हैं (हम प्रत्यक्ष की पूजा करते हैं, परोक्ष की नहीं)।
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