ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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अब श्री राजजी महाराज की जागृत बुद्धि तारतम वाणी ने रंग महल और अक्षरधाम इन दो अर्सों की तथा श्री राजजी महाराज और अक्षरब्रह्म के स्वरूप की जानकारी दी। इन्हें आज दिन तक कोई नहीं जानता था। इस तरह से अर्श की रूहों के अखण्ड सुखों की जानकारी किसी को नहीं थी। उस अखण्ड की जानकारी जागृत बुद्धि के ज्ञान से मुझे दी है।
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दीप बंदर जय राम भाई कंसारा जी के घर
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श्री जी ने उदयपुर में फकीरी भेष धारण किया था और श्री पन्ना जी तक पहना था क्योंकि श्री महाराजा छत्रसाल जी ने ही उनको चोपड़ा की हवेली में राजसी वस्त्र पहनाए थे और आभूषण भी पहनाए थे
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ब्रज में ११ साल ५२ दिन की लीला और रास में एक अखण्ड रात्रि की लीला देखने के बाद जब परमधाम वापिस गए तो उल्टा श्री राज जी महाराज कहते हैं कि मुझे ही रूहें सिखापन देने लगी कि आपकी माया ने ब्रज, रास में हमारा क्या बिगाड़ा। ये माया एक पल भी आपके चरणों से जुदा नहीं कर सकी। इसलिए आपने जो-जो खेल में दिखाने को कहा था और ब्रज रास में नहीं देखा, वह हमने अब अवश्य ही देखना है।
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