ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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यह बात हरिद्वार के प्रसंग की है श्री जी जागृत बुद्धि का निष्कलंक सफेद बागा पहनकर जाति-पाति के भेद को छोड़कर ज्ञान के संशय रहित सफेद तन रूपी घोड़े पर सवार हुए। हरिद्वार में बड़ा मेला होगा जिसमें सब धर्माचार्य श्री जी को बुद्ध निष्कलंक अवतार मान कर उनका जयघोष करेंगे । हरिद्वार के इस मेले की तैयारी सुन्दरसाथ ने एक वर्ष से (मेड़ते से ही) शुरू कर दी है।
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ईसा यानि श्री स्यामा महारानी जी को स्याम के मन्दिर में श्री राज जी महाराज ने दर्शन देकर जाग्रत बुद्धि उनको दी जिसमें ब्रज रास और धाम की जानकारी तो उनको मिली पर जागनी का कोई ज्ञान उनको नहीं मिला जो सिर्फ निज बुद्ध से ही मिल सकता है और वहीं सारी शक्तियां जब मेढ़ता में श्री जी के अन्दर विराजमान होती हैं तो यहाँ तक ईसा का ईलम चलता है उसके बाद हकी सरूप श्री प्राणनाथ जी से खुद निज बुद्ध द्वारा श्री पर...
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कुरान में इनको कौल फैल हाल कहा है और श्री निजानंद सम्प्रदाय में कहनी करनी और रहनी करके कहा है
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श्री महामति जी यानि श्री इन्द्रावती सखी, खसम हक यानि हमारे धाम धनी जी , ईसा यानि श्री श्यामा जी, महंमद यानि रसूल साहिब अक्षर की आत्म श्री महामतिजी कहते हैं, हे सुन्दरसाथजी ! अपने धनी के प्यार को देखो कि रसूल मुहम्मद और श्री श्यामा महारानी श्री देवचन्द्रजी को मेरे अन्दर बिठाकर सब धर्मग्रन्थों के छिपे भेदों के रहस्य खोल दिए।
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73 फिरके होंगे जिनमें 72 नारी और एक नाजी फिरका होगा यह एक वहीं फिरका होगा जो श्री जी की असल पहचान कर उनके कदमों पे कदम रखते हुए चलेगा
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