ऐ प्रकास जो पिउ का, टाले अंदर का फेर।
याही सब्द के सोर से, उड़ जासी सब अंधेर।।२१।।
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कुरान में रसूल साहब ने कहा था, मुसलमानो ! तुम्हारे नुकसान का वक्त आएगा। तुम्हारा ईमान गिर जाएगा। उनके बाद एक बार लोग मदीने में नमाज पढ़ रहे थे, तो खुदा ने मोहरों की बरसात की। केवल सात मुसलमानों को छोड़कर बाकी सब मोहरें उठाने भाग गये। जब मोहरें उठाने लगे, तो वह कोयला हो गए। दोनों तरफ से नुकसान हुआ।
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श्री देवचन्द्र जी ने अपने प्रीतम को सेवा से प्रसन्न किया। हमेशा उनको अपने तन मन में बसा कर रखा तब प्रीतम ने तीन बार दर्शन दिये (एक बार बारात के पीछे जाते हुए सिपाही के भेष में, दूसरी बार चितवन में अखण्ड ब्रज का ध्यान धरते समय तथा तीसरी बार श्यामजी के मन्दिर में)। तीसरी बार तारतम वाणी से घर की सब बातें बताईं और धाम धनी ने इश्क रब्द की सब सुध दी।
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जो सत्य ( अखंड) है ,चेतन ( निरंतर लीला करने वाला ) और आनंद देने की क्रिया करता है। सत्य +चित्त +आनंद =सच्चिदानंद अर्थात पूर्ण ब्रह्म परमात्मा श्री राज जी महाराज ही हैं । इस जागनी लीला में कुरान में भी खुदा की तीन सूरत का ब्यान किया है जिसे बसरी अर्थात सत , मलकी अर्थात आनंद ,हकी अर्थात चिदघन कहा है
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ईसा रूहअल्ला (श्यामा जी के पहले तन श्री देवचन्द्र जी) में जब मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम (अक्षर की आत्मा) का प्रवेश हुआ तो उस स्वरूप को अहमद कहलाने की शोभा मिली। जब यह स्वरूप श्यामा जी के दूसरे तन (श्री मिहिरराज जी) में मेंहदी (महामति) में मिला तो इन तीनों स्वरूपों को ईमाम अर्थात् (प्राणनाथ) कहा गया। पांचों शक्तियों के श्री इन्द्रावती जी के धाम-हृदय में विराजमान होने पर उन्हें महामति की शोभा म...
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आवो जी वाला मारे घेर यह प्रकरण तीन चौपाई का श्री किरंतन किताब में से है
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