आज की चौपाई

हवे वाला हूं एटलूं मांगूँ ,खिण एक अलगां न थैए।
जिहां अमने विरह नहीं,चालो ते घर जैए ।।

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Shri Nijanand Samparday

किस आत्म ने श्री जी के रहते दो बार तन धारण करके उनके चरणों में तन छोड़ा बताईए सुन्दरसाथ जी

by Shri Nijanand Samparday

अमलावती की आत्म ने पहले फूल बाई के तन में फिर तेज कुंवरी के तन में

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तब श्री जी साहिब जी ने कह्या, जो कोई लूला पांगला साथ । इन्द्रावती न छोड़े तिनको, पहुंचावे पकड़ हाथ ॥ यह बात श्री जी ने श्री बीतक साहिब में कहाँ पर कही थी बताईए सुन्दरसाथ जी

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सूरत में

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सो बुध दोऊ अर्सों की, दोऊ सरूप थें जो गुझ । ए सुख कायम अर्स रूहन के, सो कायम कुंजी दई मुझ । । सिनगार के दूसरे प्रकरण की चौ का बेवरा करें सुन्दरसाथ जी

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अब श्री राजजी महाराज की जागृत बुद्धि तारतम वाणी ने रंग महल और अक्षरधाम इन दो अर्सों की तथा श्री राजजी महाराज और अक्षरब्रह्म के स्वरूप की जानकारी दी। इन्हें आज दिन तक कोई नहीं जानता था। इस तरह से अर्श की रूहों के अखण्ड सुखों की जानकारी किसी को नहीं थी। उस अखण्ड की जानकारी जागृत बुद्धि के ज्ञान से मुझे दी है।

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हवे पेहेलां मोहजल नी कहूं बात । यह प्रकरण कहाँ पर उतरा बताईए सुन्दरसाथ जी

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दीप बंदर जय राम भाई कंसारा जी के घर

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उदयपुर से जो श्री जी ने फकीरी भेष धारण किया था वोह उन्होंने कहाँ तक पहना था बताईए सुन्दरसाथ जी

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श्री जी ने उदयपुर में फकीरी भेष धारण किया था और श्री पन्ना जी तक पहना था क्योंकि श्री महाराजा छत्रसाल जी ने ही उनको चोपड़ा की हवेली में राजसी वस्त्र पहनाए थे और आभूषण भी पहनाए थे

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