आज की चौपाई

सोई कूकां करे पेहेले की,सो क्यों न समझो बात।
न तो दिन उजाले खरे दो पोहोरे,अब हो जासी रात ।।

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Shri Nijanand Samparday

सुकव्यास कहे भागवत में, प्रेम न त्रिगुण पास । यह चौपाई श्री कुलजम सरूप साहिब के कौन से ग्रन्थ से है बताईए सुन्दरसाथ जी

by Shri Nijanand Samparday

परिकरमा ग्रन्थ से प्रेम को अंग बरनन वाले प्रकरण की चौथी चौपाई

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रब रसूल बतावे गैब का, हम पूजें जाहेर। हम बातून को पोहोंचे नहीं, देखें नजर बाहेर ।। खि. प्र .13/ 23 इस चौ. का बेवरा करें सुन्दरसाथ जी

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रसूल साहब कहते हैं कि पारब्रह्म अतीत में छिपे हैं जो दिखाई नहीं देते। हमारा खुदा मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारों में बैठा है। उसकी हम पूजा करते हैं। हम छिपे परमात्मा को जो नजर नहीं आता, नहीं मानते। हम तो परमात्मा को सामने देखकर पूजते हैं (हम प्रत्यक्ष की पूजा करते हैं, परोक्ष की नहीं)।

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प्याले-निसबत-मोमिनों-हुकमें-ए इस्क -महामत-हक-भर-सागर-फूल-ल्यो-कहे ए -भर-पिओ । कृपया इस चौपाई को सही से बताईए सुन्दरसाथ जी

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महामत कहे ए मोमिनों,ए निसबत इस्क सागर। ल्यो प्याले हक हुकमें, पिओ फूल भर भर ।।

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मैं अंग इमाम को,मोमिन मेरे अंग। बीच आए तिन वास्ते,करूं सब एक संग ॥ सनंध की इस चौपाई में कौन किसका अंग है बताईए सुन्दरसाथ जी

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यहाँ श्री महामति जी के हृदय में विराजमान श्यामा जी की आत्मा कहती है कि मैं परब्रह्म अक्षरातीत की अंग रूपा हूं तथा सभी ब्रह्ममुनि मेरे ही अंग हैं। सभी माया का खेल देखने इस संसार में आए हैं। अब मैं तारतम ज्ञान के प्रकाश में सबको परब्रह्म की पहचान कराकर एकत्रित करूंगी।

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